लेखनी कहानी -16-Jan-2023 1)पहला कदम शिक्षा की और( स्कूल - कॉलेज के सुनहरे दिन )
शीर्षक = पहला कदम शिक्षा की और
यादों के झरोखे के बाद लेखनी द्वारा आयोजित इस प्रतियोगिता के माध्यम से एक बार फिर अपने उन्ही पुरानी और धुंधली हो चुकी यादों पर से वक़्त की चढ़ चुकी धूल को हटाने का मौका मिल रहा है
यादों के झरोखे के माध्यम में बहुत सी ऐसी यादें थी जो शायद लिखना छूट गयी थी, या फिर समय की कमी के कारण उनको साँझा करना जरूरी नही समझा, लेकिन अब जबकी उसी की तरह एक दूसरी प्रतियोगिता लेखनी द्वारा आयोजित की गयी है, और उसमे सिर्फ और सिर्फ अपने उन सुनहरे दिनों की यादों को लफ्ज़ो के माध्यम से लिखने का मौका मिल रहा है जो की हम सब ने अपनी अपनी स्कूल और कॉलेज जीवन में जिए होते है
उनसे ज्यादा सुनहरे दिन और क्या हो सकते है, ज़ब ज़िम्मेदारियों का नही किताबों का बोझ कांधे पर डाले अपनी ही मस्ती में मगन हम छोटी छोटी ख़ुशी मिलने पर खुश हो जाया करते थे, दुसरे दोस्त से अधिक अंक लाने की ख़ुशी, अध्यापक या अध्यापिका द्वारा लाल पेन से कॉपी पर गुड लिखने की ख़ुशी, लाल पेन से लिखने की ख़ुशी, अध्यापिका द्वारा शब्बाशी देने की ख़ुशी, असेंबली में खड़े होकर प्रार्थना कराने की ख़ुशी,
गणित के अध्यापक के ना आने की ख़ुशी, होम वर्क पूरा होने की ख़ुशी, अपने दोस्त को होम वर्क ना कर पाने पर डांट पड़ने की ख़ुशी,स्कूल की जल्दी छुट्टी हो जाने की ख़ुशी, घर से माँ या पिता का आधे दिन से छुट्टी लेने आने की ख़ुशी, रविवार आने की ख़ुशी।शक्तिमान, रामायण, अलिफ़ लैला, सोन परी और शका लका बूम बुम के एपिसोड का क्लास में ज़िक्र करने की ख़ुशी, लंच ब्रेक होने से पहले ही खाना खा लेने की ख़ुशी, ब्लैक बोर्ड पर से सब कुछ कॉपी में सबसे पहले नोट करने की ख़ुशी,उस समय ख़ुशी किसी भी बडी उपलब्धि की मोताज नही थी, जो भी मिला जितना भी मिला उसी में खुश हो जाते थे, कुछ इस तरह का था बचपन हमारा और वो स्कूल और उससे जुड़े वो सुनहरे दिन
ख़ुशक़िस्मत होते है, वो बच्चें जिन्हे विद्या के मंदिर कहे जाने वाले विद्यालय में जाने का अवसर मिलता है, और विद्या जैसी अनमोल चीज सीखने का अवसर मिलता है, ताकि वो अपना जीवन अंधकार से निकाल कर उजाले की और ले जा सके और मैं उन खुश नसीब बच्चों में शामिल होता हूँ, जिसे अपने माता पिता की बदौलत उनके कठिन परिश्रम की बदौलत मुझे स्कूल जाकर पढ़ने का अवसर मिला, वरना तो बहुत सारे बच्चों के लिए स्कूल और किताबें एक ख्वाब बन कर ही उनकी आँखों में टूट जाते है, उनके छोटे छोटे कांधो पर किताबों का नही बल्कि घर की ज़िम्मेदारियों का बोझ आन पड़ता है और उनके हाथ से कॉपी कलम छीन कर उन्हें बाल मजदूरी जैसे कामों की तरफ धकेल दिया जाता है
आइये शुरू करते है, अपने इस सफर को जिसमे मैं अपनी प्राइमरी से लेकर ग्रेजुएशन तक के स्कूल और कॉलेज के सफर को आप सब के साथ साँझा करना पसंद करूंगा, उम्मीद करता हूँ आप सब को पसंद आएगा मेरे द्वारा लिखा गया मेरा संस्मरण
हम सब ही जानते है, हम सब की पहली अध्यापिका और पहला शिक्षा का केंद्र हमारा घर और हमारी माँ होती है, जो हमें अच्छे और बुरे में फर्क बताना सिखाती है, उसी के साथ साथ हम जिस धर्म और मजहब में पैदा हुए होते है, उससे जुडी बाते हमें बताती है, किस तरह हमें अपने बड़ो और छोटो से बात करनी है, किसी के घर जाने पर किस तरह का व्यवहार करना चाहिए हमें सिखाती है, कच्ची माटी समान हमारे शरीर और मन को कुम्हार की भांति कभी नर्मी दिखा कर तो कभी सख़्ती बरत कर एक ऐसे सांचे में ढालने का प्रयास करती है, जिस तरह कुम्हार चाक पर बनाये बर्तन को खूबसूरत और सुडोल बनाने का हर दम प्रयास करता है, ताकि वो बर्तन अच्छा और लम्बे समय तक अपनी छवि बनाये रखे उसे खरीदने वाले के मन में
इसी तरह हर माँ का अपनी औलाद की परवरिश करते समय यही एक सपना होता है, कि उसकी परवरिश में कोई कमी ना आ सके उससे मिलने वाला, उससे बात करने वाले के मन में उसकी छवि बरकरार रहे, जिस तरह माटी के बर्तन का अच्छा निकल जाने पर कुम्हार की तारीफ की जाती है, उसी तरह अच्छा व्यवहार और आचरण होने पर बच्चें की माँ को सराहा जाता है, लेकिन सब कुछ माँ तो नही सिखा सकती है, माँ का काम तो सिर्फ बच्चें को पहले पायदान पर खड़ा करना होता है, उसे संस्कार और अच्छा आचरण प्रदान करना होता है, लेकिन इन सब के बावज़ूद शिक्षा जो की लड़का हो या लड़की हर किसी के लिए आवश्यक है, उसे सीखने के लिए हमें अध्यापक या फिर अध्यापिका के पास जाना पड़ता है, और किताबी ज्ञान हासिल करना पड़ता है, जो की विद्या के मंदिर कह लाये जाने वाले विद्यालयों में मिलता है, जहाँ हमें नर्सरी में दाखिला लेना पड़ता है और उसके बाद जैसे जैसे हम अपने आप को शिक्षा के क्षेत्र में निखारते चलते है वैसे वैसे हम आगे बढ़ते चलते है
इस संस्मरण में,हम अपनी प्रथम कक्षा के बारे में बताएँगे, क्यूंकि नर्सेरी और U. K. G के बारे में बताना थोड़ा मुश्किल होगा, क्यूंकि उस समय जो कुछ हुआ उसे याद करना थोड़ा मुश्किल सा है, बस इतना कह सकते है, की हमें पढ़ने का शोक बहुत था और आज़ भी है, जिसके चलते हम अपने बड़े भाई बहनो को स्कूल जाता देख बहुत रोते थे, और खुद भी स्कूल जाना चाहते थे, जिसके चलते हमारा दाखिला बहुत जल्द स्कूल में हो गया था, और उस बारे में हमें कुछ ज्यादा याद नहीं
पहली कक्षा तक आते आते हम थोड़ा समझदार हो गए थे, और समझने लगे थे,अपने स्कूल और अपने साथ पढ़ने वाले बच्चों को
वो मेरा पहला स्कूल था, जिसका नाम बाल शिक्षा केंद्र था, जो की अभी भी चल रहा है, वैसे तो उसका नाम बाल शिक्षा केंद्र था, लेकिन उस स्कूल पर लाल रंग हुआ था वो स्कूल एक घर में बना हुआ था जिसका रंग लाल था, जिस वजह से सब उसे लाल बिल्डिंग वाले स्कूल के नाम से मुख़ातिब करते थे और आज़ भी करते है
वो स्कूल मेरा पहला स्कूल था, जहाँ से मैंने कक्षा नर्सरी से लेकर कक्षा पांच तक की पढ़ाई की थी, और अपने सुनहरे बचपन को उस स्कूल और वहाँ पढ़ने वाले अपने दोस्तों के साथ जिया था
कक्षा प्रथम से लेकर कक्षा पांच तक हमने वहाँ जो कुछ भी किया, और जो कुछ हमें याद है उनका ज़िक्र हम अपने अगले संस्मरण में करेंगे
अभी के लिए अपने इस सफऱ को यही छोड़ते है, और फिर मिलते है, एक नई याद गार लम्हें को आपके समक्ष रखने हेतु, ज़ब तक के लिए अलविदा, खुश रहे, हस्ते मुस्कुराते रहे , क्या पता कल हो ना हो, इसलिए जहाँ भी है जैसे भी है, अपने उस पल का हहर दम आनंद लेते रहे , लोगो की बातों पर ध्यान ना दे, उन्हें जो कहना है कहने दीजिये, बहने वाली नदी की धारा की तरह बहते रहिये, अपने रास्ते बनाते रहिये, अपने आचरण और स्वाभाव से सबका मन जीतते रहिये
धन्यवाद
स्कूल / कॉलेज के सुनहरे दिन
kashish
10-Mar-2023 04:22 PM
very nice
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Radhika
09-Mar-2023 01:43 PM
Nice
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Gunjan Kamal
20-Jan-2023 05:00 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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